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शील आदि पूर भेद कर्मके कलाप छेद ।
प्रात्म-शक्तिको प्रकाश शुद्ध चेतना विलास ॥ सरि धर्मको प्रकाश, शुद्ध धर्म रूप जान ।
मै नमूत्रिकाल एक ही अभेद पक्षमान ॥२१॥
__ॐ ह्री सूरितपेभ्यो नमः अध्यं । लोक चाहकी न दाह, द्वष को प्रवेश नाह ।
शुद्ध चेतना प्रवाह, वृद्धता धरै अथाह ॥ सूरि धर्मको प्रकाश, सिद्ध धर्म रूपं जान ।
मै नमू त्रिकाल एक ही अभेद पक्षमान ॥२२०॥
ॐ ह्री सूरिपरमतपेभ्यो नम अयं । मोह को न जोर जाय, घोर आपदा नसाय ।
घोरतें तपो सु लोक-शीश जाय मुक्ति पाय ॥ सूरि धर्मको प्रकाश, सिद्ध धर्म रूप जान ।
मै नमूत्रिकाल एक ही अभेद पक्षमान ॥२२१॥ ॐ ह्री सूरितपोधोरगुणेभ्यो नम. अर्घ्य ।
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सप्तमी पूजा
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