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नय प्रमाणको गमन नहीं, स्वयं ज्योति परकाश । अद्भत गुरण पर्यायमें, सुखसूकर विलास ही पहं पमिामायनमा ११२
मती आदि क्रमवत विन, केवल लक्ष्मीनाय । सिद्ध महाबोध तम नाम है, नम पांय धरि माय || महायोगाय नम पाis
कर्मयोगते जगतमें, जीव शक्ति को नाश। स्वयंवीर्य अद्भत धरै, नम चरण सुखरासदीपमहानमा पाए। छायक लब्धि महान है, ताको लाभ लहाय । महालाभ यात कहै, बंदू तिनके पाय ॥ पई मामा. १९५॥ ज्ञानावरणादिक पटल, छायो प्रातम ज्योति । ताको नाश भये विमल, दीप्त रूप उद्योत ॥ोप मा म प १ ? ज्ञानानन्द स्व लक्ष्मी को, भोगै वाधाहीन। पंचम गतिमें वास है, नमू जोग पद लीन ॥ोप मोगगुगामे नम मध्यं ॥१७॥ । पर निमित्त जामें नहीं, स्व आनन्द अपार।
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प्रष्टम
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जप्राधारानीवमहानागानमः पापं ॥११॥