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पूज्यपरगा नहीं और में, इक तुम ही में जान । सद्ध महार्ह तुम गुण प्रभू, पूजत हो कल्याण
वि०
होंर्हं महार्हाय नम ग्रध्यं । २१३। अचल शिवालय के विषै, अमित काल रहैं राज । चिरजीवी कहलात हो, बंदू शिवसुख काज ॥ ॐ ह्री ग्रह तत्रायुषे नम प्रध्य २१४॥ मररण रहित शिवपद लसै, काल श्रनन्तानन्त ।
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दीर्घायू तुम नाम है, बन्दत नितप्रति सत ॥ ह्री ग्रह दोर्घायुषे नम प्रध्य । २१५। सकल तत्त्व के श्रर्थ कहि, निराबाध निरशंस ।
धर्ममार्ग प्रकटाइयो, नमत मिटै दुख अंश ॥ॐ ह्रीग्रह प्रावाचे नम प्रयं ॥ २१६ मुनिजन नितप्रति ध्यावतें, पावे निज कल्याण ।
सज्जन जन श्राराध्य हो, मै ध्याऊं धरि ध्यान ॥हीग्रह मज्जनवल्लभाय नम शिवसुख जाको ध्यावत, पावै सन्त मुनीन्द्र ।
परमराध्य कहात हो, पायो नाम अतीन्द्र ॥ॐ ह्रीं श्रहं परमाराध्यायनम श्रध्यं । २१८ पंचकल्याण प्रसिद्ध हैं, गर्भ आदि निर्वारण | देवन करि पूजित भये, पायो शिवमुखयान ॥ ही ग्रहं पचकल्याणपूनितायनम •
अष्टम
पूजा
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