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निज सुखमे सुख होत है, पर सुखमे सुख नाहि ।
सो तुम निज सुखके धनी, मै बंदू हूँ ताहि ॥ॐ ह्री ग्रह अननगौम्यायनम गय॑ १०८ ॥ वि., तीन लोक तिहुँ कालके, गुरण पर्यय कछु नाहि । २७११ जाको तुम जानो नहीं, ज्ञान भानुके माहि ॥ॐ ह्री अहं विश्वज्ञानागनम अयं ।१०६६
द्रव्य तथा गुरण पर्यको, देखै एकीबार । विश्व दर्श तुन नाम है, बंदो भक्ति विचार॥ॐ ह्री पहं विश्वणिनेनम अध्यं ।।१०। संपूरण अवलोकते, दर्शन धरोअपार।
नमू सिद्ध कर-जोरिक, करो जगत से पार ॥ ही प्रहअखिलाथदणिनेनम प्रध्यं १११ । इन्द्रिय ज्ञान परोक्ष है, क्रमवर्ती कहलाय । इविन इंद्रिय प्रत्यक्ष है, धरो ज्ञान सुखदाय ॥४ह्री प्रहं निष्पक्षदर्शनायनम मध्य ११२ , । विश्व मांहि तुम अर्थ सब, देखो एकीबार ।
विश्वचक्षु तुम नाम है, बंदू भक्ति विचार ॥ही अहं विशाचक्षुपेनम अर्घ्य । ११. अष्टम है तीन लोकके अर्थ जे, बाकी रहो न शेष। युगपततुम सब जानियो, गुरण पर्याय विशेष ॥ॐ ह्री ग्रह अशेषविदेनम अयं ।१४।।
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