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पच परम पद पाइयो, ब्रह्म नाम है एक।
पज मन वच काय करि, नाशैविघ्न अनेक ॥हीं पहंपचनह्मणेनम प्रध्यं ।।१५०।। वि० निज विभूति सर्वस्व तुम, पायो सहज सुभाय।
हीनाधिकबिनबिलसते,बंदू ध्यान लगाय॥ ॐ ह्रीं प्रई मर्याय नम अध्यं ॥१५१ ।
पूरण पण्डित ईश हो, जुद्ध धाम अभिराम । है बंदमन वच काय करि, पाऊं मोक्ष सुधाम ॥ ह्री प्रहमवविद्येश्य रापनम.पy.५२ इमोह कर्म चकचरतें, स्वाभाविक शुभ चाल । ६ शुध परिणाम धरै सदा, बंदू नित नमि भाल॥ह्रीं ग्रहं गुनये नमःप्रध्यं ।।१५३।
ज्ञान दर्श आवर्ण विन, दीपो अनंतानंत । सकल ज्ञेयप्रतिभास है, तुम्है नमै नित संत ॥ॐ ह्रीं प्रहं प्रनतदीप्तयेन मोऽध्य ॥ १५४, इक इक गुरण प्रतिछेदको, पार न पायो जाय ।
प्रष्ट सो गुण रास अनंत है, बंदू तिनके पाय ॥ह्री महं मनतात्मने नम अयं ॥ ५॥ पूजा अहमिदनकी शक्ति जो, करो अनंती रास ।
१२७७ १ सोतुमशक्ति अनंत गुण, कर अनंतप्रकाश ॥ह्रीं पहं अनतशक्तये नम मध्य १५,
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