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सिद्ध
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मंगल वीर्य महा गुणधामी, निज़ पुरुषार्थ हि मोक्ष लहामी । साधुः।
___ो ह्री साधुवीयपरममंगलाय नमः मध्यं । ४२१॥ वीर्य स्वभाविक पूर्ण तिहारा, कर्म नशाय भये भवपारा । साधु.
_ ओ माधुवीर्य द्रव्याय नम अर्घ्य ॥ ४२२॥ , तीन हि लोक लखे सब जोई, आप समान न उत्तम कोई । साधु,
पो ही साधुलोकोत्तमाय नम. अयं ॥ ४२३ ॥ लोक सभी विधि बन्धन माही, तुम सम रूप धरे ते नाहीं। साधु.
ओ ह्री साधुलोकोत्तमगुणाय नमः अर्घ्य । ४२४।। लोकनके गुण पाप कलेशा, उत्तम रूप नहीं तुम जैसा । साधुः
प्रो साधुलोकोत्तमगुणस्वरूपाय नमः अयं ।। ४२५ ॥ लोक अलोक निहारक नामी, उत्तम द्रव्य तुम्हीं अभिरामी। साधु ॥
ओ-ह्री साधुलोकोत्तमद्रव्याय नमः अयं ॥ ४२६ ॥ लोक सभीषद्रव्य रचाया, उत्तम द्रव्य तुम्ही हम पाया । साधु ॥
प्रो ही सालोकोत्तमद्रव्यस्वरूपाय नम अध्यं ।। ४२७ ।। ज्ञानमई चित उत्तम सोहै, ऐसे लोक विषै अरु को है । साधु.॥२३७
ओ ही साधुलोकोत्तमज्ञानाय नम अध्य" ।। ४२८ ॥