________________
ज्यों शशि जोति रहैं सियरा नित, ज्यों रवि जोति रहे नित ताप। ई A ज्यो निज ज्ञानकला परपूरण, राजत हो निज करण सु प्रापासूरि।
ॐ ह्री सूरिगुणद्रव्णय नमः अर्घ्य ।। २६६ ।। हो अविनाश अनुपम रूपसु, ज्ञान मई नित केलि करान। पैन तजे मरजाद रहै, जिम सिन्धु कलोल सदा परिमारण ॥सरि०॥
ह्री सूरिपर्यायाय नमः अध्यं ॥१७॥ ६ जे कछु द्रव्य तनो गुण है, सु समस्त मिल गुण प्रातम माहीं।। ताकरि द्रव्य सरूप कहावत, है अविनाश नमै हम ताई ॥सूरि०।२७१।।
ह्रीं सूरिगुणम्वरूपाय नम प्रय। जा गुण मे गुण और न हो, निज द्रव्य रहै नित और न ठौर । सो गुण रूप सदा निवस, हम पूजत है करके कर जोर सूरि०।२७२ ॥ ॐ ह्री सूरिगुणस्वरूपाय नमः अयं ।
सतमो जो परिणाम धरै तिनसों, तिनमेकरहे वरत तिस रूप ।। सो पर्याय उपाय विना नित, आप विराजत हैं सु अनूप ॥सूरि०।२७३।१२१३
ॐ ह्री सूरिपर्यायस्वरूपाय नम अर्घ्य ।
nnnnronununurwwwwrium
marian
पूजा