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गिनती परमाण जु लोक धरे, परदेश समूह प्रकाश करे। सिद्ध० इनहीं गुणमें मन पागत है, शिववास करो शरणागत है ॥१६६॥ वि०
____ॐ ह्री सिद्धासख्यातशरणाय नमः अध्यं । १९२
पूर्वापर एकहि रूप लसे, नित लोक सिंहासन वास बसे । इनहीं गुरणमे मन पागत है, शिववास करो शरणागत है ॥१७०॥
___ॐ ह्री सिद्धध्रौव्यगुणशरणाय नम अध्यं । जगवास पर्याय विनाश कियो, अब निश्चय रूप विशुद्ध भयो। इनहीं गुणमे मन पागत है, शिववास करो शरणागत है ॥१७१॥
ॐ ह्री सिद्धोत्पादगुणशरणाय नमः अध्यं । परद्रव्यथको रुष राग नहीं, निज भाव बिना कहुँ लाग नहीं। इनहीं गुरणमे मन पागत है, शिववास करो शरणागत है ।।१७२॥
ह्री सिद्धसाम्यगुणशरणाय नम: अर्घ्य । विन कर्म कलंक विराजत हैं, अति स्वच्छ महागुरण राजत है। इनहीं गुणमे मन पागत है, शिववास करो शरणागत है ॥१७३॥ १२
ॐ ह्री सिद्धस्वच्छगुणशरणाय नमः अयं ।
सप्तमी