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तदा ते मुनयो धीराः शुक्ल ध्यानेन संस्थिताः हत्वा कर्माणि निःशेषं प्राप्ताः सिद्धिं जगद्धितांम् ॥ ४२ ॥
(ब्र • नेमिदत्त कृत भाराधना कथा कोश भा० ३ कथां ७३ नंद वंशोच्छेदक चाणक्य की कथा श्लो ४२ पृ० ३१३ )
पर उसने (चाणक्य ने ) उसे बड़ी सहन शीलता के साथ सह लिया और अन्त में अपनी शुक्ल ध्यान रूपी श्रात्म शक्ति से कर्मों का नाश कर सिद्ध गति लाभ की x + चाणक्य श्रादि निर्मल चारित्र के धारक थे सब मुनि अब सिध्धि गति में ही सदा रहेंगे ।
( पं० उदयलाल काशलीबाल कृत, आराधनो कथाकोश का हिन्दीभाषातर पृ० ४६ से ५३ )
६- शान्ति देवी ने भी श्रात्म समाधि प्राप्त की, कारण १. दिगम्बरता आदि
( श्रवण बेल्गोल के शिला लेख नं०)
१० – नित्यस्नानं गृहस्थस्य, देवार्चन परिग्रहे । यतेस्तु दुर्जनस्पर्शात्, स्नानमन्यद् विगर्हितं ॥ १ ॥
तत्र यतेः रजस्वलास्पर्शे चण्डालस्पर्शे शुनक गर्दभ नापित योग कपालस्पर्शे वमने विष्टोपरि पाद पतने शरीरोपरि काक विमोचने इत्यादि स्नानोत्पत्तौ सत्यां दंडवद् उपविश्यते, श्रावकादिक रछात्रादिको वा जलं नामयति, सर्वांगं प्रक्षालनं क्रियते, स्वयं हस्तमर्दनेन गमलं न दूरी क्रियते । स्नाने संजाते सति उपवासो गृहयते, पंच नमस्कार शतमष्टोतरं कायोत्सर्गेण तप्यते एवं शुद्धिर्भवति ।
माने-दिगम्बर मुनि को जल स्नान जा है, सीर्फ वस्त्र वेजा है। ( आ० कुन्द कुग्द कृत मोक्ष प्राभृत गा० ९८ की श्रुतसागरी टीका ३०३ ) उपरोक्त सब बातें दिगम्बरीय अपरिग्रहता को आभारी है।