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जैन-केवली भगवान को केवलज्ञान होने के कारण भावइन्द्रिय नहीं हैं किन्तु द्रव्यइन्द्रिय रहती हैं, वैसे भाव मन नहीं होता है किन्तु द्रव्यमन रहता है और वे शरीर से व वचन योगसे आहार निहार विहार उपदेश वगैरह काम लेते हैं। वैसे द्रव्य मन से भी काम लेते हैं।
दिगम्बर-केवलीओं को द्रव्यमन होने का दिगम्बर प्रमाण दीजीए
जैन-दिगम्बर शास्त्र भी मानते हैं कि केवली भगवान् को द्रव्यमन है। देखीए. (१) केवली को मन है, अत एव वे पर्याप्त है।
(गोम्मटसार कर्मकांड, गाथा २७२) (२) पञ्जत्तिगुणसमिद्धो उत्तमदेवो हवइ अरुहो ॥३४॥ टीका-मनःपर्याप्ति एवं कायवाङ्मनसां । दसपाणा पजत्ती ॥३८॥ टीका-षट् पर्याप्तयश्चाईति भवन्ति ।
___ (आ० कुन्दकुन्दकृत बोधप्राभृत) (३) पंचवि इंदियपाणा मणवयकायेण तिण्णि बलपाणा ॥३५॥
दसपाणा पजत्ती ॥३८॥ टीका-दशप्राणाः पूर्वोक्त लक्षणाः अर्हति भवन्ति ।
माने-अरिहंत में-केवली में १० प्राण हैं जिनमें एक मन भी है।
(बोधप्रामृत) (४) सम्मत्त सनि आहारे ॥३३॥ . . ... टीका-संज्ञिद्रयमध्येऽर्हन् संज्ञी ह्येक एव.... . अरिहंत केवली संशी हैं माने मनबाले हैं। मनरहित होता हैं वह असंही माना जाता है, तीर्थकर भगवान् मन वाले है
(आ० कुन्दकुन्दकृत बोधप्राभूत) (५) केवली को सत्य मनोयोग और असत्यामृषा मनोयोग होते हैं।
हैं वह असंही माना जाता