Book Title: Shwetambar Digambar Part 01 And 02
Author(s): Darshanvijay
Publisher: Mafatlal Manekchand

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Page 286
________________ १३७ दिगम्बर-श्वेताम्बर मानते हैं कि-(९) तीर्थकर भगवान को सर्वज्ञ होने के पश्चात् उपसर्ग होते नहीं है, इतनाही नहीं, उनके नाम लेने वालेके भी उपद्रव शान्त हो जाते हैं। किन्तु भ० महावीर स्वामी को शिष्याभास गोशाल द्वारा उपसर्ग हुआ, एवं छै महिने तक अशाता वेदनीय का उदय रहा। वह नौवां 'उपसर्ग' आश्चर्य है। जैन-दिगम्बरशास्त्र छद्मस्थ तीर्थकर को और खास करके "उपसर्गाभाव" अतिशय द्वारा सर्वज्ञ-तीर्थकर को सर्वथा उपसर्ग रहित जाहिर करते हैं, और भगवान् पार्श्वनाथ के उपसर्ग को 'आश्चर्य में दर्ज भी मानते हैं तो फिर सर्वज्ञतीर्थंकर को उपसर्ग होवे वह 'आश्चर्य' है ही। श्वेताम्बर शास्त्र सिर्फ सर्वज्ञ तीर्थकर के लिए ही उपसर्ग की मना करते हैं, अतः मंखलीगोशाल द्वारा सर्वज्ञ भ० महावीर स्वामी को उपसर्ग हुआ वह अघटघटना मानी जाती है। इस मंखलीपुत्र गोशाल का जीक दिगम्बर शास्त्र में भी मीलता है। दिगम्बर-केवली भगवान् को अशातावेदनीय और वधपरिषह होते हैं, फिर उपसर्ग होवे उसमें 'आश्चर्य' क्या है ? जैन-३४ अतिशय होने से तीर्थंकरों को उपसर्ग होता ही नहीं है, अत एव तीर्थकर को 'उपसर्ग होना' वह आश्चर्य माना जाता है। __ यहां मुनि सुनक्षत्र और मुनि सर्वानुभूति की तेजोलेश्या से मृत्यु, भगवान् को उपसर्ग और छै महिने तक पित्तज्वर-दाह का रोग इत्यादि सब इस 'आश्चर्य' में दर्ज है। दिगम्बर-श्वेताम्बर मानते हैं कि-(१०) सूर्य और चन्द्र अपने मूल विमान के साथ कभी भी यहां आते नहीं है, किन्तु सूर्य और चंद्र अपने मूल विमान के साथ भ० महावीरस्वामी को वंदन करने के लीए कौशाम्बी में आये, वह दसवां 'सूर्य-चंद्रावतरण' आश्चर्य है। जैन-इन्द्र वगेरह को यहां आना हो तो वे अपने स्वाभाविक वैक्रिय रूप से नहीं किन्तु उत्तरवैक्रिय रूप से ही यहां आते है।

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