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है और वह दिगम्बर धर्म में सहज ही होता रहता है। अस्तु । कुछ भी हो। ऐसी घटना कोई अघटन घटना नहीं है। . . दिगम्बर-दिगम्बर मानते हैं कि-उस धर्म विच्छेद के समय 'ब्राह्मण कुलकी उत्पत्ति' हुई। वह भी आश्चर्य है। ... जैन-यहां ब्राह्मण कुलको उत्पत्ति यह कोई अजीब वात नहीं है किन्तु वे ब्राह्मण गृहस्थी हो गये अविरति रहे असंयति रहे फिर भी धर्मगुरु बन बेठे और अपनी पूजा कराने लगे यह अजीब बात है।
माने-"असंयति पूजा' ही यहां आश्चर्य घटना है। ... दिगम्बर-इस असंयति पूजा के जरिए तो सब भट्टारकजी कविवर बनारसीदासजी श्वताम्बर कडुआशाह लोकाशाह * श्रीमद रायचंदजी व कानजीस्वामी वगेरह नये मतवाले भी आश्चर्य में शामील हो जावेंगे।
जैन-भूलना नहीं चाहिये कि गृहस्थ होने पर भी धर्मगुरु बन बैठे श्रमणधर्म की कमजोरी का लाभ उठावे और जैनधर्म के प्रधान २ उसुलो से खिलाफ चले, इत्यादि परिस्थिति में ही 'असंयति पूजा'की घटना मानी जा सकती है।
दिगम्बर-दिगम्बर माननीय विद्वान् श्रीयुत ‘गोपालदासजी' बरैया, मुरैनावाले लिखते हैं कि
* दिगम्बर भाचार्थ श्रूतमागरजी तत्कालीन लोकागच्छ का परिचय देते हैं कि- अथवा कलौ पंचमकाले कलुषाः कश्मलिनः शौचधर्मरहिताः वर्णान् लोपयित्वा यत्र तत्र भिक्षाग्राहिणः मांसभक्षिगृहेष्वपि प्रासुकमन्नादिकं गृह्णन्तः कलिकलुषास्ते च ते पापा: पापमूर्तयः श्वेम्बराभासाः लोकायकाऽपरनामानो लीका म्लेच्छश्मशानास्पदेष्वपि भोजनादिकं कुर्वाणा स्तद्धर्मरहिताः कलिकलुषपापरहिताः श्री मूलसंघे परमदिगम्बरा मोक्षं प्राप्नुवन्ति, लैंकास्तु नरकादौ पतन्ति, देवगुरुशास्त्रपूजादि विलोपकत्वादित्यर्थः ।
(दर्शनप्राभृत गा० ६ की टीका पृ. ६) लोकास्तु पापिष्ठा मिथ्यादृष्टयो जिनस्तवनपूजनप्रतिबन्धकत्वात् तेषां संभाषणं न कर्तव्यं तत्संभाषणे महापापमुत्पद्यते । तथा चोक्तं कालिदासेन कविना-"निवार्थतामालि ?." तेन जिनमुनिनिन्दका लैका परिहर्त्तव्याः।
(भावप्रामृत गा० १४१ की टीका पृ. २८७)