Book Title: Shwetambar Digambar Part 01 And 02
Author(s): Darshanvijay
Publisher: Mafatlal Manekchand

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Page 277
________________ समुद्र के किनारे आकर शंख बजाया, इस प्रकार दोनों के शंखशब्द मीले। वह पांचवा "अपरकंका गमन" आश्चर्य है। जैन-तीर्थकर चक्रवर्ति बलदेव व वासुदेव दूसरे क्षेत्र में जावे और क्रमशः दूसरे तीर्थकर आदिसे मीले इत्यादि बात की दिगम्बर भी मना करते हैं, फिर कृष्ण वासुदेव धातकी खंड में गये वह 'अघट घटना' है ही। दिगम्बर-समुद्र के जलको हटाना, उसमें तो कोई आश्चर्य है नहीं, दिगम्बर शास्त्र में इस विषय की और भी नजीरें मीलती हैं। देखिए (१) गंगादेवीने भरत चक्रवर्ती का सत्कार किया, और भरत चक्रवर्तीने रथ द्वारा समुद्रके जलमार्ग में गमन किया। - (२) देवने समुद्र को हटा कर कृष्ण के लीये द्वारिका नगरी बसाई। दिगम्बरी पद्मपुराण में तो वाली के पातालगमन तक का उल्लेख है तो फिर धातकी खंड में जाना कोई विशेष बात नहीं है। द्रौपदीका हरण और उसे वापिस लाना, और कीसी राजाका पराजय करना उसमें भी कोई आश्चर्य नहीं है। जैन-यहाँ वासुदेव का ही दूसरे वासुदेव के क्षेत्र में जाना, और दो वासुदेवो का शरीर से नहीं किन्तु शंख शब्द से मीलना वही आश्चर्य माना जाता है। दिगम्बर-श्वेताम्र कहते हैं कि (६) तीर्थकर उग्रकुल भोगकुल राजन्यकुल इक्ष्वाकुकुल क्षत्रियकुल या हरिवंश में गर्भरूप से आते हैं और जन्म लेते हैं। किन्तु भ० महावीर स्वामी ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी देवानंदा ब्राह्मणी की कोख में गर्भरूपसे आये, इन्द्र के देवने उनका सिद्धार्थ राजा को त्रिशला रानी की कोख में परावर्तन किया, और भ० महावीर स्वामोने त्रिशला रानी की कोख से जन्म पाया। वह छट्ठा 'गर्भापहार' आश्चर्य है। जैन-तीर्थकरो का अयोध्या में राजकुल से ही जन्म, सम्मेदशिखर से ही मोक्ष इत्यादि कुछ कुछ नियम दिगम्बर भी मानते हैं, स्थान की मान्यता तो साधारण है किन्तु उच्चगोत्र

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