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(४) दि० पं० चम्पालालजी और दि० पं० लालारामजी शास्त्री लखते हैं कि-
"वर्तमानकाल में जो ग्रंथ हैं सो सब मूलरूप इस पंचमकालके होनेवाले आचार्यों के बनाए हैं "
(चर्चा सागर चर्चा. २५०, पृ० ५०३ ) इत्यादि २ प्रमाणो से स्पष्ट है कि-दिगम्बरीय साहित्य श्वेताम्बरीय साहित्य का अनुजीवी साहित्य है, और कुछ २ कल्पना प्रधान भी है ।
प्रत्यक्ष प्रमाण है कि - महावीर चरित्र के सबसे प्राचीन ग्रंथ श्री सुधर्मास्वामी कृत आचारांग सूत्र श्रीभद्रबाहुस्वामी कृत कल्पसूत्र और आवश्यक निर्युक्ति ही हैं सब दिगम्बरीय महाबीर चरित्र उनके आधार पर बने हैं । फिर भी इन में उपर के लेख के अनुसार बहोत कमी हैं। बांबू कामताप्रसादजी जैनने हाल में ही महावीर चरित्र का नया आविष्कार किया है, जिस में - कलिकाल सर्वज्ञ आ० श्री हेमचन्द्रसूरि आदि के महावीर चरित्र से भगवान् महावीर स्वामी का छद्मस्थ विहार लेकर तद्दन नये रूपमें दाखल कर दिया है ।
इस हालत में भगवान् महावीर स्वामी के चरित्र के लीये श्वेताम्बर साहित्य अधिक प्रमाणिक है यहि निर्विवाद सिद्ध हो जाता है।
इसी प्रकार श्वेताम्बर दिगम्बर के ओर २ मान्यता भेद है, वे भी साहित्य की प्राचीनता और अर्वाचीनता के कारण ही है । दिगम्बर - श्वेताम्बर मानते हैं कि- भगवान् महावीर स्वामी का गर्भापहार हुआ था ।
जैन - वे इसको आश्चर्य घटना भी मानते हैं ।
दिगम्बर - श्वेताम्बर मानते हैं कि--भगवान् महावीर स्वामीने गर्भ में ही अपने माता-पिता के स्वर्गगमन होने के बाद दीक्षा लेनेका अभिग्रह किया था ।
जैन - तीर्थकर तीन ज्ञानवाले होते हैं और वे ज्ञानदृष्ट भावि भाव को अनुसरते हैं । भगवान् महावीर स्वामीने अपना दीक्षा