________________
१०६
"त्वं" तिक्ता दूर्जरा तस्य वातकृमिकफापहा । स्वादु शीतं गुरु स्निग्धं “ मांसं " मारुतपित्तजित् ॥
( सुश्रुत संहिता) "त्वकू" तिक्तकटुका स्निग्धा मातुलुंगस्य वातजित् । बृहणं मधुरं "मांसं " वातपित्त - हरं गुरु ॥
( सुश्रुत संहिता) पूतना स्थिमती सूक्ष्मा कथिता मांसला मृता ॥ ८ ॥
( भावप्रकाशनिघण्टु, हरितक्यादिवर्ग ) मांसफला - बैंगन ( शब्द स्तोत्र महा निधि ) एवं 'मांस' का प्रधान अर्थ 'फलगर्भ' भी है ।
(३) “नपुंसकलिङ्ग वाला ही मांस शब्द मांसवाचक है किन्तु पुल्लिंगी मांसशब्द मांसवाचक नहीं है। यहां तो मांसक शब्द पुल्लिंग में ही है । कोई भी भाषा शास्त्री यहां भ्रमित अर्थ : न कर बैठे, इस के लीये स्पष्टतया यह पुंल्लिंग प्रयोग किया गया है, फिर कोई यहां मांस अर्थ करने लगे तो वह उसकी मनमानी है ।
वास्तव में पुल्लिंग होनेके कारण यहां मांसका अर्थ मांस नहीं किन्तु 'पाक' ही होता है ।
भगवती सूत्र के प्राचीन चूर्णीकार और टीकाकारोने भी "कुक्कुटमांसकं - बीजपुरकं कटाहं" लीखकर मांस का अर्थ 'पाक' ही लिया है ।
सारांश - यहां 'मंसए' शब्द 'बीजौरा पाक' का द्योतक है । उक्त मुकम्मल पाठ पर विचार
यह सारा पाठ दाहज्वर के वनस्पति- औषध का द्योतक है । मूलपाठ इस प्रकार है
तत्थणं रेवतीए गाहावइणिए मम अट्ठाए दुवे कवोयसरीरा उवक्खड़िया, तेहिं नो अट्ठो । अस्थि से अन्न पारियासिए मजार कड़ए कुक्कुड़मंसए, तमाहराहि एएणं अट्ठो ।
सर्वतो मुखी बुद्धिसे शोचा जाय तो इस समुच्चय पाठका अर्थ निम्न प्रकार ही है
वहां रेवती गाथापत्नीने मेरे निमित्त दो पैठे बना रक्खे हैं,