________________
जैन-धर्म अधर्मका युगल माना जाता है, जगत् में अनेकान्त दर्शन होता है तब एकांत दर्शन भी होते हैं, जैनधर्म होता है तब इतर धर्म भी होते हैं। अजैन राजा बलवान होकर जैन-. धर्म पर आक्रमण करे यह भी शक्य बात है, चौथे आरे में ही नमूचिने कितना उत्पात मचाया था? तो पांचवे आरे में कोई जैनेतर राजा जैन धर्म पर आक्रमण करे इसमें आश्चर्य किस बातका है ?।
मगर ठीक पांचसौर वर्ष बीतने पर क्रमशः कलंकी व अर्धकलंकी होते ही रहे, यह बात भी ठीक नहीं है। आज पर्यंत वीर निर्वाणसे २४६९ वर्ष समाप्त हो गये, किन्तु पांचसो २ वर्षके हिसाबसे कल्की व उपकल्की पाये जाते नहीं हैं। ___ यहां इतना ही मानना ठीक है कि-प्रसंगर पर जैनधर्मके द्वेषी राजा होते रहेंगे कोई जैनधर्म को कम नुकसान तो कोई अधिक नुकसान पहुंचावेगा। और कोई जैनधर्म का महान द्वेषी कल्की भी होगा। किन्तु ११ कल्की और ११ उपकल्की होंगे यह वात प्रमाणिक नहीं है। इस हालतमें यह आश्चर्य भी निराधार हो जाता है।
भूलना नहीं चाहिये कि-बीर शासन २१००० बर्ष तक चलेगा, उसमें कुछ २ चड़ती पड़ती होती रहेगी किन्तु सर्वथा धर्मविच्छेद नहीं होगा ॥१०॥
दिगम्बर-दिगम्बर मानते हैं कि-२४ तीर्थंकरोके अंतर कालमें जैनधर्मका विच्छेद होना नहीं चाहिये किन्तु भगवान् सुविधिनाथजी से लेकर भगवान् शान्तिनाथजी तक तीर्थकरेंके बीचले २ कालमें जैनधर्मका 'विच्छेद' हुआ। यह आश्चर्य है।
(त्रिलोकसार गा० ८१४) जैन-तीर्थकरोंके बाद उनके शासनमें ज्ञान व चारित्र घटते जाते हैं, इसी प्रकार घटते२ विच्छेद भी हो जाय तो उसमें आश्चर्य भी क्या है?। ___ दिगम्बर मतमें तो एक ही तीर्थकर के शासन में भी अनेक धर्म विच्छेद और पुनर्विधान माने गये हैं। फिर उसका तो भीन्नर तीर्थकरो के शासन में होनेवाले 'धर्मविच्छेद' का शोचना हो बेजा है।