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( जैन दर्शन व० ४ ० ७ पृ० ३२० )
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दिगम्बर — जैनमुनि रातको पानी न रक्खे । जैन - जैन मुनि पीने के निमित पानी न रक्खे, किन्तु शौच के निमित्त चूना आदि से विकृत करके प्राशुक पानी रक्खे | दिगम्बर शास्त्र तो अशुचि होने पर स्नान तक का भी विधान करते हैं (देखो, षटप्राभृत पृष्ट - ३७३ ) अतः शौच के निमित्त पानी रखना अनिवार्य है ।
दिगम्बर- -मुनि को वेदोदय हो तो श्रावक उनको जनाना समर्पित करके संतुष्ट करे, स्थिर करे | ऐसा श्वेताम्बर शास्त्र में विधान है।
- जैन
- महानुभाव ? यह तो किसी दिगम्बर विद्वान ने श्वेताम्बर मुनियों को बदनाम करने के लिये ऐसा लिख दिया है, मैं मानता हूं कि दिगम्बर के श्रावकव्रत में काफी गड़बड़ है । देखियेः—
१ - परविवाह करणेत्वारका परिग्राहता अपरिगृहितागमनानंगक्रीड़ा तीव्रकामाभिनिवेशः
( श्री तत्वार्थ सूत्र श्र० ७ सूत्र २८ )
- पराविवाह० - ताभ्यां सरागवागादि वपुस्पर्शो ऽथवा रतम् हास्य आलिंगन भोग दोषो ऽतिचारसंज्ञोपि ब्रह्मचर्य हानये । ( कवि राजमल्ल कृत लाटीसंहिता )
३- परविवाहकरणं इत्वरिका अपरिगृहितागमन इत्वरिका परिगृहितागमन अनंगक्रीडा तीव्रकामाभिनिवेशश्च ॥ अपरिग्रहीता तस्यां गमनम् श्रासेवनम् ।
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(चामुंडराय, चारित्र सार )
४- परविवाह करणानगक्रीडास्मरागसां ॥ परिगृहित्वे त्वारका गमनं सेतरं मलाः ॥ ७१ ॥