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७ - ब्र० शीतलप्रसादजी ने मोक्ष मार्ग प्रकाशक भा० २ श्र० ४ मोहनीयकर्म के सत्तास्थान में क्रमशः षंढ या स्त्री वेद के क्षय से १२ की, षंढ या स्त्री वेद में से शेष 1 के क्षय से ११ की, हास्यादि ६ नौ कषाय के क्षय से ५ की, और पुंवेद के क्षय से ४ की सत्ता लिखी है । माने स्त्री को क्रमशः नपुंसकवेद स्त्रीवेद और पुंवेद का क्षय होता है ( पृ० १७७-१७६ )
८ - पं० श्रशाधरजी सागार धर्मामृत के श्र० ८ में स्पष्ट करते हैं कि
दौत्सर्गिक मन्यद्वा लिंग मुक्तं जिनैः स्त्रियाः पुंवत दिष्यते मृत्यु काले स्वल्प कृतोपधेः । ८ । ३६ माने - स्त्री भी जिनोपदिष्ट मुनिलिंग-दीक्षा की अधिकारिणी है । इत्यादि ।
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दिगम्बर चरणकरणानुयोग शास्त्रों के प्रमाण
१ - अज्जा गमण काले, ण अस्थि दव्वं तधेव एक्केण । ताहिं पु संल्लावो, ण य कायव्वो अकज्जेण ॥ १७७ तासिं पुण पुच्छा, इक्किस्से समय कहिज्ज एक्कोदु | गणिणी पुरो किच्चा, जदि पुच्छह तो कहे दव्वं १७८ साधु और अर्जिकाओं को आपस २ में उक्त प्रकार से वर्ताव करना चाहिये ।
( आ० वट्टेरक कृत मूलाचार अ० ४ श्लोक १७७-१७८ ) २ - दिपडिम वीरचरिया तियाल जोगे शियमेण । सिद्धांत रहस्सा धणं, अहियारो गुत्थी देस बिरियागं ( आ० वसुनन्दी सिद्धान्त चक्रवर्ती कृत श्रावकाचार ) वीरचर्या च सूर्यप्रतिमा. त्रिकाल योग धारणं नियमश्च । सिद्धान्त रहस्यादि ष्वध्ययनं नास्ति देश विरतानाम् ॥ ( आवकाचार प० २४९ ० ५०० )
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