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हैं। वे देखती हो, बोलती हो एसी भगवान आदिनाथके समान ५०० धनुष्य ऊंची रत्नमय १००८ जिन प्रतिमाएं हैं।
स्पष्ट बात है कि जिनेश्वरकी आंखे खुली हुई रहेती है।
(५) पं. द्यानतराय कृत दिगम्बरीय नंदीश्वर द्वीप पूजा में अकृत्रिम प्रतिमाओं का स्वरूप बताया है कि
शैल बत्तीस ३२ एक सहस जोजन कहे । चार ४ सोलह १६ मिले सर्व बावन ५२ लहे ॥ एक इक शीष पर एक जिनमंदिरं । भवन बावन्न ५२ प्रतिमा नमों सुखकरं ॥६॥ बिंब अठ एक सौ १०८ रतन मई सोह हीं। देव देवी सरव नयन मन मोहहीं। पाँच सौ ५०० धनुष तन, पद्म आसन, परं। भवन बावन्न ५२ प्रतिमा नमों सुखकरं ॥७॥ लाल-नख-मुख, नयन श्याम अरु श्वेत हैं । श्याम रंग भोंह-सिर केश, छबि देत हैं। बचन बोलत मनो हँसत कालुष हरं । भवन बावन्न ५२ प्रतिमा नमों सुखकरं ॥८॥
माने-अकृतिम जिन प्रतिमाओं का मुख लाल है नखून लाल हैं आख सफेद हैं । बीचमें काला रंग है। आँखकी भोंहकाली हैं शिरके केश काले हैं । जिनमुद्रा भी वास्तवमें ऐसी ही होती है। अतः अकृत्रिम प्रतिमाकी मुद्रा भी ऐसी बताई है। कृत्रिम प्रतिमा बनानेवाले भी आख वगैरह में ऐसा ही रंग लगावे तब ही दिगंबर शास्त्र प्रमाण प्रतिमा बन सकती है। आज कल दिगम्बर समाजमें आँख रहित और तंबोल आदि रंगसे रहित जो प्रतिमाएं बनाई जाती हैं-रक्खी जाती हैं, वे सब दिगम्बर शास्त्र से विरुद्ध एवं कल्पित हैं। . (६) दिगम्बर सम्मत तीर्थकर के ३४ अतिशय में नेत्रों में मेषोन्मेष के अभावको अतिशय माना है, तब भी तीर्थकरके सिवाय केवली भगवान् में मेषोन्मेष सिद्ध हो जाता है।