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संघ में फूट पड़ने का भय बना रहता था ? दिगम्बर सम्प्रदाय में संघ भेद होने का यही मुख्य कारण है । इस के सम्बन्ध की घटनाओं को जानने के लिये पुरातत्व संग्रह ( Epigraphical Record ) को सावधानी से अध्ययन करने की आवश्यकता है।
(जैनदर्शन, व० ४ अं० ७ पृ० २९१ )
उपाध्ये के इस लेख से स्पष्ट है कि दि० समाज उत्सर्ग और अपवाद में खचातानी करने से मूल, नन्दी, माथुर, यापनीय काटा. इत्यादि अनेक टुकड़ों में विभक्त हो गयी हैं
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जैन - - यद्यपि दिगम्बर विद्वान श्वेताम्बर उत्सर्ग और अपवाद पर आक्षेप करते हैं किन्तु दिगम्बर मुनि भी अपवाद और प्रायश्चित से परे नहीं हैं ।
श्वेताम्बर शास्त्रों में नमुचि वगैरह का जो उल्लेख है वह धर्मरक्षा की दृष्टि से है और अपवाद रूप होने से माकूल 1
भूलना नहीं चाहिये कि जैन दर्शन में उत्सर्ग और अपवाद से ही सारी व्यवस्था होती है ।
दिगम्बर मुनि को उपासकों के प्रति आशीर्वाद में "धर्मवृद्धि" कहना चाहिये, धर्मलाभ नहीं कहना चाहिये ।
- वत्थु
जैन- सहावो धम्मो, अतः आत्मा को स्वभाव का लाभ हो और विभाव का अभाव हो यही इच्छनीय वस्तु है 1 इसकारण "धर्मलाभ" कहना ही उचित आशीर्वाद है । इसका अर्थ होता है कि आत्मा के आठों गुणों की प्राप्ति हो ।
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