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आपके शास्त्र बदलते आये हैं और बदलते रहेंगे ।
पंडित भी गृहस्थ ही हैं, जिनको न ब्रह्मचर्य है, न भक्षाभक्ष की मर्यादा है न चारित्र है मनमानी लिखदें और वह दिगम्बर समाज का शास्त्र बन जाय । मुबारक हो, इन दिगम्बरीय आप्तागम को । महानुभाव ? जैन दर्शन अनेकान्त दर्शन है । अपवाद को उड़ाने बाला या एकान्त को मानने वाला, जैन कहलाने के योग्य भी नहीं रह सकता है ।
दिगम्बर--मुनि दूसरे को दंडे, बांधे या मारे ऐसा अपवाद तो उचित नहीं है । जैसा कि कालिकाचार्य जीने साध्वी की रक्षा और संघ के हित निमित्त किया है ।
जैन — दिगम्बर द्रव्य संग्रह वृत्ति वगैरह में विष्णु कुमार ने वचन छल से बलि को बांधा था ऐसा लिखा है । तथा विद्याधर श्रवण और बज्रकुमार का भी वैसा ही प्रसंग उल्लिखित है । आप इनको ठीक क्यों मानते हैं ?
दिगम्बर-धर्मरक्षण के लिये ऐसा करना पडा ! वे अपनी इन्द्रियों के सुख के लिये ऐसा नहीं करते ।
जैन--तब तो आपने अपवाद को स्वीकार कर लिया । दिगम्बर- यदि ऐसा है तो किसी को बांधे, लंड देवे, मगर उसको जान से मारना ठीक नहीं है । मारने से व्रत भंग होता है ।
जैन -- क्या तीन योग और तीन कोटि से प्रतिज्ञा धारक मुनि को दूसरे को बांधने में अहिंसा व्रत का उल्लंघन नहीं है ! बचन छल करने में सत्य व्रत का भंग नहीं है ?
दिगम्बर- प्रमत्त योगात् प्राणव्यपरोपण हिंसा, और द्वेष बुद्धा अन्यस्य दुःखोत्पानं हिसा होने पर भी धर्म रक्षा के कारण