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बध्यते मुकुटं मुनि, रचितं कुसुमोत्करैः ।
कंठे श्रीवृषभेशस्य पृष्पमाला च धार्यते ॥
कन्याने श्रा० शु० ७ के दिन ऋषभदेव भगवान को मुकुट और पुष्प माला पहिनाई ।
( कथा कोश मुकुट सप्तमी कथा, खर्चासागर पृ० २१७, २४६ )
कन्या मुकुट चढ़ाते समय भावना भाती है कि "हे जिनवर आप मुक्ति स्त्री के वर हो इसलिये आपके लिये यह मुकुट और माला पहिनाये जाते हैं ।
( मुकुट सप्तमी कथा पं० परमेष्ठीदास की चर्चासागर समीक्षा, पृ० १८३ )
दिगम्बर —- जब दिगम्बर समाज स्त्री दीक्षा का ही निषेध करती है तो फिर स्त्री को मोक्ष कैसे मिल सकती है ।
जैन - दिगम्बराचार्य भी पाँचवे छटे और सातवे गुणस्थान की उदय विच्छेद प्रकृतियों में स्त्री का निषेध नहीं करते हैं फिर कैसे माना जाय कि स्त्री को मुनि दीक्षा नहीं है ।
देसे तदिय कसाया, तिरिया उज्जोय गीच तिरिय गदी । छट्ठे आहारदुगं, श्रीणतिगं उदय वोच्छिण्णा ॥ २६७ ॥ ( गोम्मटसार कर्म० गा० २६७ )
पाँचवें गुणस्थान में प्रत्याख्यानी ४ कषाय, तिर्यच आयु,
उद्योत, नीचगोत्र व तिर्यचगति का, और छटे गुणस्थान में
श्राहारक शरीरद्विक व निन्द्रा ३ का उदय व्युच्छेद होता है ॥ २६७॥
सातवें गुणस्थान में सम्यक्त्व प्रकृति व अन्तिम ३ संहनन का उदयव्युच्छेद होता है ॥ ६७॥ इससे साफ प्रकट है । कि इन गुण स्थानों में स्त्री वेद या स्त्री जाति का निषेध नहीं है।