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न मुच्यन्ते भवात्तस्मात् ते ये लिङ्गकृताग्रहाः ॥ ८७ ॥ पुरुष या नग्न ही मोक्ष में जाते हैं इत्यादि लिंग के श्राग्रह से संमार बढ़ता है।
जाति लिंग विकल्पेन, येषां च समयाग्रहः ।
ते न प्राप्नुवन्त्येव परमं पदमात्मनः ॥ ८६ ॥
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मैं ब्राह्मण हूं मैं पुरुष हूं या नग्न हूं ऐसा आग्रह मोक्ष बाधक है ।
५- प्रा० नेमिचन्द्रसूरि "स्त्री मोक्ष' का क्रम बनाते हैं
( गोम्मटसार )
आहारं तु पत्ते, तिथं केवलिणि, मिस्सयं मिस्से । प्रमत्त गुण स्थान में आहारकद्विक होता है ।
( गोम्मट सार कर्मकाण्ड गा० २६१ )
अपमत्ते सम्मत्तं अन्तिम तिय संहृदीय sपुब्वम्मि । छच्चेव गोकसाया, अणिट्टिय भाग भांगेसु ॥ २६८ ॥ वेदात कोह माणं, माया संजलण मेव ॥ २६६ ॥
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अर्थ ७ अप्रमत्त गुण स्थान में सम्यक्त्व प्रकृति और अंत के तीन संहनन का ८ अपूर्व गुणस्थान में हास्यादि छै कषायों का तथा अनिवृत्ति गुण स्थान में निन वेद और तीन कषायों का उदय विच्छेद होता है ।
( गोम्मटसार कर्मकांड गा० २६६ - २६६ )
माने- पुरुष स्त्री और नपुंसक ये तीनों ६ वें गुणस्थान को पाते है तब उनके वेदों का उदय विच्छेद है । बाद के गुण स्थान में उनको अपने २ वेद कषाय का उदय नहीं होता है उनको नाम कर्म का उदय विद्यमान होने के कारण शरीर की रचना मात्र रहती है और वे श्रवेदी माने जाते हैं ।
पज्जते वि इत्थी बेदाऽपज्जति परिहीयो ॥ ३०९ ॥