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[ ११३ ] असली खलु पढमं, दोच्चं च सरीसया, तइय पक्खी ॥ सीहा जति चउत्थीं, उरगा पुण पंचमी पुढवीं ॥ १ ॥ बट्ठी य इत्थीयाओ, मच्छा मणुया य सत्तमी पुढवीं । एसो परमोवाओ, बोधव्वो नरय पुढवीसु ॥ २॥
अर्थ-पहिल नरक में असंज्ञी ( असैनी), दूसरे में सरीसर्प, तृतीय में पक्षी, चतुर्थ में सिंह, पाँचवें में उरपरिसर्प, छटवें में स्त्री और सप्तम में मनुष्य व मत्स्य, जा सकते हैं। इस प्रकार सातों नरकों की उत्कृष्ट उत्पत्ति कही गई है। __ यहाँ साफ २ है कि स्त्री सातवें नरक में नहीं जा सकती है तो गति की समानता के नियम से मानना ही पड़ेगा कि स्त्री मोक्ष में भी नहीं जासकती है।
जैन--महानुभाव ? उक्त संहनन वाले सभी जीव उक्त गति को अवश्य पा सकें एसा एकान्त नियम नहीं है किन्तु वे जीव उनसे आगे न जासके यह एकान्त नियम है। यह उत्कृष्ट उपपान की बात है जो सबको मंजूर है। इस सिध्धांत से तो वज्र ऋषभनाराच संहनन वाली स्त्री सातवे नरक में जावे या न जावे किन्तु मोक्ष में जा सकती है, इसमें कीसी भी प्रकार से शंका का स्थान नहीं है।
मगर अापने गति समानता का जो नक्सा खींचा है वह तो कीसी की सनक मात्र है। ऐसा नियम ही नहीं है और हो भी नही सकता है। क्यों ! कि-कोई नरक में जा सकते हैं, मोक्ष में जा सकते ही नहीं. कोई मोक्ष में जा सकते हैं नरक में जाते ही नहीं है, और कोई २ नत्रि में विभिन्न नर को में जा सकते हैं किन्तु ऊपर तो नियत स्वर्ग में ही जा सकते हैं
इस प्रकार जीव विशेषता या कर्म वैचित्र्य के कारण उर्ध्वगति