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परिवर्तन के साथ उच्च नीच गोत्र के उदय का भी परिवर्तन मानते हैं जाति और कुल को कल्पना रूप मानते हैं और उच्च श्राचार वाले शुद्र को जिन दीक्षा की प्राप्ति भी मानते हैं फिर मोक्ष का निषेध कैसे माना जाय ? जहां सम्यक् चारित्र है जिन दीक्षा है वहां मोक्ष है ही।
दिगम्बर–गोत्र का परिवर्तन और जाति आदि कल्पना के लिये दिगम्बर प्रमाण बताइये ।
जैन-दिगम्बर विद्वान् गोत्रकर्म की प्रकृति में वापसी परिवर्तन और जाति कल को असद रूप मानते हैं। उनके पाठ निम्न प्रकार हैं। णवि देहो बंदिज्जइ, णवि कुलो ण वि य जाइ संजुत्ता को वंदिम गुण हीणो, णहु समणो णेव सावोहोई ॥ २७। शरीर, कुल जाति श्रमण लिंग या श्रावक वेष वन्दनीय नहीं हैं; गुण वन्दनीय है।
( आ० कुन्द कुन्द कृत दर्शन प्राभति ) उत्तम धम्मेण जुत्तो, होदि तिरक्खोवि उत्तमो देवो । चंडालो वि सुरीन्दो, उत्तमधम्मेण संभवदि । चंडाल और नीर्यच धर्म के जरिये उत्तम माने जाते हैं।
( स्वामीकार्तिकेया नुप्रेक्षा गा० ४३० ) पूर्वविभ्रम संस्कारात् , भ्रान्तिं भूयोपि गच्छति ।। विभाव की विचारणा करने वाला जीव ज्ञानी होने पर भी मैं ब्राह्मण हूँ वह शूद्र है ऐसे भ्रम में पुराने विभ्रम संस्कार से पुनः फस जाता है ॥ ४५ ॥