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[६८ ] सं कारण फर्क पड़े वह अपवाद मार्ग है । ये दोनों विधि मार्ग हैं। अपवाद भी देश काल परिश्रम और सहन शीलता के कारण उपयुक्त है, माने, श्रार्तध्यान और रौद्र ध्यान से बचने के लिये विधि मार्ग है और उस अपवाद सेवन की शुद्धि तो प्रायश्चित से
हो ही जाती है। ___ अपवाद में व्रत प्रतिक्षा का अविकल स्वरूप नहीं रहता है। जैसे कि
उत्सर्ग-मुनि किसी जीव की हिंन्सा न करे ? । अपवाद-मुनि नदी को पार करे ? १उत्सर्ग-मुनि रात्रि भोजन न करे!
अपवाद-पंचानां मूल गुणानां रात्रि भोजन वर्जनस्य च पराभियोगात् बलादन्यतमं प्रति सेवमानः पुलाकनिर्गन्थो भवति
.......... (दिगम्बर तत्वार्थ सूत्र.) - उत्सर्ग-दिगम्बर मुनि पांच तरह के वस्त्र को न रक्खे।
अपवाद-दिगम्बर मुनि वस्त्र को पहिने, कम्बल ओढे।
(१) चर्यादिवेलायां । तट्टी सादरादिकेन शरीर माच्छाध चर्यादिकं कृत्वा पुनः तन्मुञ्चतीति उपदेश कृतः संयमिनां इत्यप चादवेषः । + + सोपि अपवादलिंगः प्रोच्यते । उत्सर्ग वेषस्तु नग्न एवं शांतव्यः । सामान्योक्तो विधि रुत्सर्गः, विशेषोक्तो विधि रपबांदा, इति परिभाषणात् । ........
(दर्शन प्राभृत गा० २४ की श्रुतसागरी टीका पृ० २१)
२) म्यलिग प्रतीत्येति" तत्किं केचिदसमर्था महर्षयः शीतकालादो कंबलशब्दवाच्यं कौशयादिकं गृहणन्ते, न तत् प्रशालन्ते न सीम्यन्ते न प्रयत्लादिकं कुर्वन्ति, अपर काले पगिरः