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[ १४ ] दिगम्बर--मुनि को उपधि रखना चाहिये, मगर उसमें उनी रजोहरण और कमली नहीं रखना चाहिये ? क्योंकि ऊन अपवित्र वस्तु है यदि रजोहरण रखना अनिवार्य है तो मोर पीछ, गीधपीछ, बलाक पीछ या और कोई पीछ रखनी चाहिये ? क्योंकि ये पवित्र हैं।
जैन--चमडी केश नख पीछे ये सब एक से हैं, इनमें पवित्रता और अपवित्रता का भेद कैसे माना जाय ?
दिगम्बर--पीछे, कुदरतन मिलती हैं इनके पाने में मोर आदि की हिंसा नहीं होती है अतः पीछे पवित्र हैं। ऊन कतर के ली जाती है इसके पाने में भेड़ वगैरह की हिंसा होती है या वह मरे हुए भेड़ की मीलती है अतः ऊन अपवित्र है।
जैन--महानुभाव! पीछे खींचने से मोर को बड़ा कष्ट होता है वह मर भी जाता है, पीछे मुश्किल से प्राधाकर्मीक श्रादि दोष युक्त
और मरे मोर के भी मिलते हैं, यह है आपकी पवित्र वस्तु । और जिस वस्तु के पाने में न भेड़ की हिंसा है न कष्ट है न आधाकर्मी पाप है और ऋतु आदि की अपेक्षा से जिसका काटना अनि. वार्य एवं उपकार रूप माना जाता है, वह वस्तु है अपवित्र ! ___ इस प्रकार मनमानी कल्पना से क्या कोई वस्तु पवित्र या अपवित्र बन सकती है ! __ यहाँ वस्तु स्थिति यही है कि दिगम्बर विद्वानों ने श्वेताम्बर मुनिभेष की निन्दा करने के लिये ऊनको अपवित्र लिख दिया है वास्तव में ऊन अपवित्र नहीं है लौकिक व्यवहारों में भी ऊनी सूती कपड़े की बनिस्पत अधिक पवित्र मानी जाती है।
दिगम्बर-जब मुनि वस्त्र रख सकते हैं तो उनको पात्र रखाने में किसी प्रकार का विरोध नहीं होना चाहिये, कमण्डल