________________
[ ६०] खमणं छट्ठ- ट्ठम-दसभखमणं खमणं च घट्ट अट्ठमरी, ★ खमणं खमणं खमणं, छहुंच गदस्सिमो छेदो ॥७८
( भ० इन्द्रनन्दी कृत-क्रेदपिंडम् गा० ७८ ) आद्यश्चतुर्दश दिनैर्विनिवृत्तयोगः । षष्ठेन निष्ठित कृति जिन वर्धमानः ॥ शेषा विधूतघन कर्म्म निबद्ध पाशाः । मासेन ते यति वरास्त्व भवन् वियोगाः ।। २६ ॥
( समाधि भक्ति इलो० २६ ॥ )
माने छुट्ट, ष्ठम, दशमभक्त इत्यादि तप परिभाषा है, इनका अर्थ होता है २ उपवास ३ उपवास ४ उपवास व्रत इत्यादि । यहां उपवास के दिनों की दो २ खुराक और अंतरपारणा ( धारणा ) तथा पारणा के एक एक दिन की एकेकवार की २ खुराक का त्याग होता है, इस हिसाब से "दो उपवास वगैरह में है खुराक के त्याग रूप छठ्ठ” इत्यादि संज्ञा दी जाती है । वास्तव में प्रति दिन दो २ दफे खुराक लेना माना जाता है, उनकी मयसंख्या प्रतिज्ञा छट्टु आदि शब्दो से होती है
जैन - आप मुनि की तपस्या में प्रति दिन दो २ खुराक का हिसाब लगाते हैं. तब तो ठीक है कि मुनि उत्सर्ग से दो दफे श्रहार करें और उनके त्याग में चतुर्थ भक्त छठ्ठभक्त आदि प्रतिज्ञा भी करें । इस विधान से एक दफे ही श्राहार बताना वह एकान्त बचन हो जाता है । इसके अलावा तपस्वी आदि के लिये तो विशेष आजादी है, वे अधिक लाभ के निमित्त विशेष दफे आहार लें तो भी अनुचित नहीं है ।
दिगम्बर--मुनि आहार शौषध या भेषज में मांस वगैरह को ग्रहण न करे ।