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[ ५४. ] शरीर वस्त्र वाला होता है । प्रात्मा से वस्त्र का क्या सम्बन्ध है ? वह तो नग्न ही है।
नयत्या त्मान मात्मैव, जन्म निर्वाण मेव च ॥ ७५ ॥
श्रात्मा ही आत्मा को संसार में फिराता है और मोक्ष में ले जाता है माने-"नग्नत्व से मोक्ष है" यह बात कहने मात्र है। लिग देहाश्रितं दृष्टं, देह एवात्मनो भवः ।। न मुच्यन्ते भवात्तस्मात्ते ये लिंग कृताग्रहाः ॥ ७॥ जातिदेहाश्रिता दृष्टा ॥ ८८ ॥ ब्राह्मण पुरुष या नंगा ही मोक्ष में जा सकता है । इत्यादि लिंग के आग्रह से संसार बढ़ता है ।
जाति लिंग विकल्पेन, येषां च समयाग्रहः ।। ते न आप्नुवन्त्येव, परमं पदमात्मानः ॥ ८६ ॥ मैं ब्राह्मण हूँ मैं नग्न साधु हूँ ऐसा आग्रह ही मोक्ष का बाधक है
(आ पूज्यपाद कृत समाधि शतक) संघो को विन तारइ, कट्ठो मूलो तहेव निपिच्छो । अप्पा तारइ तम्हा, अप्पा ओ मायव्वो ॥
(आ० अमृत चन्द्र कृत श्रावकाचार) पिच्छे ण हु सम्मत्तं, करगहिए चमर मोरडंबरो समभावे जिणदिटुं, रागाइ दोस चत्तण ।। २८ ॥
( ढाढसी) केकीपिच्छः श्वेतवासो, द्रावीडो यापनीयकः। निष्पिच्छश्चेति पंचैते, जैनाभासाः प्रकीर्तिताः ॥
(दि० आ० इन्द्र नन्दी कृत नीतिसार पलो०१०)