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[ ३५ । अंसमुहूर्त का है। यहाँ ध्यान अवस्था होती है। फिर संज्वल नादि तेरह कषायों के तीव्र उदय से प्रमत विरत नाम छठे गुण स्थान में आजाता है। "
(भा• कुन्द कुन्द कृत पंचास्तिकाप गा० १३१ की प्र. शीतलप्रसाद कृत भाषा टीका खं० २ पृ० ०१)
. ऊपर के प्रमाणों से भी यही मानना होगा कि वस्त्र वाला छटा व सातवाँ गुण स्थान का अधिकारी है, माने गृहस्थ और स्त्री ये सब इन गुण स्थान के अधिकारी हैं __ यही कारण है कि भरतं चक्रवर्ति को गृहस्थ दशा में ही केवल शान हुआ था दिगम्बर विद्वानों ने भी इस मान्यता को लोकोक्ति के रूप में स्वीकृति दे दी है जिसकी विशेष विचारणा "मोक्ष योग्य" अधिकार में की जायगी।
दिगम्बर--वस्त्र वाले को जैन मुनि मान लो, मूर्छा के अभाव होने से अपरिग्रही निर्गन्थ मान लो, छठा और सातवें गुण स्थान के अधिकारी मानलो मगर उसे मोक्ष हरागज नहीं मिल सकती है, क्योंकि नंगापन ही मुनि लिंग है । और वही मोक्ष मार्ग है। जैसे कि लिंग जह जाद रूप मिदि भणिदं ॥ २४ ॥
। (मा० कुन्द कुन्द कृत प्रवचन सार गा० २४ ) . जैन--"ही" और "भी" ये एकान्त वाद और अनेकान्त बाद के भेदक सूत्र हैं । “नग्नता ही मोक्ष मार्ग है" ऐसा कहना ही एकान्त बाद है, और नग्नता भी मोक्ष मार्ग है, ऐसा कहना सो. अनेकान्त बाद है। आप "अनेकान्त वादी” बन जाओ, जब आप को अपनी गलती ख्याल में आ जायगी। , , आप मानते हो कि "नग्नता ही मोक्ष मार्ग है" तब तो मनुष्य के अतिरिक्त सब प्राणी, चूहा, कुत्ता, बिल्ली, सिंह, तोता, कौला