________________
[ ३३ ]
DE ऊपर
कै अनुसार
( भा० शिवकोटिकृत रत्नमाला ) ( भा० देव सेन कृत भाव संग्रह )
F भोगोपभोग विरमण के स्थान पर देशावगासिक का स्वीकार और शेष ऊपर के अनुसार
( आ० जिनसेन कृत आदि पुराण पर्व १०) G सामायिक पौषध का अस्वीकार, परिभोग का भिन्न श्राविष्कार, देशावगासिक का स्वीकार और शेष ऊपर के अनुसार ( श्रा० वसुवन्दीकृत )
आजकल भी दिगम्बर समाज में जो सामायिक किया जाता है, वह ५ या १० मिनट तक ध्यान रूप और जो पौषध किया जाता है वह सर्फि उपवास रूप किया जाता है, माने वे उसमें असली रूप से नहीं रहे है | दिगम्बरत्व की रक्षा के कारण उन सामायिक देशावगासिक और पौषध व्रतों की कैसी शोचनीय दशा हुई है ? अस्तु ।
1
दिगम्बर — वस्त्र वाले को छट्टा प्रमत्त गुण स्थान की प्राप्ति नहीं होती है ।
जैन -- -- यह भी आप की मनमानी कल्पना है यदि मूच्र्छा वाले उस गुण स्थान को नहीं पा सकते हैं ऐसा माना जाय तब तो वाकई में ठीक है मगर आपने तो कुछ का कुछ मान रक्खा है | असल में तो दिगम्बर श्राचार्य वस्त्र वाले को ही नहीं वरन् गृहस्थ को भी छठा और सातवा गुण स्थान की प्राप्ति बताते हैं ।
वे फरमाते हैं कि जीव पांच वे गुण स्थान के बाद सातवे गुण स्थान में ही चढ़ जाता है । और बाद में लौट कर छटे गुण में श्राता है । गुण स्थान प्राप्ति का नियम है कि कोई जीव पाचवे से छठ में नहीं जाता है, मान पंचम गुण स्थान वर्ती
स्थान