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[ २५ ] निकाला गया है माने तब से ही एकान्त दिगम्बरत्व की जड़ जमी है।
इन सब बातों के सोचने से क्या यह विवेक नहीं आता है, कि मुनियों का वस्त्र धारण ही असली वस्तु है और एकान्त नग्नता का आग्रह नकली वस्तु है ! ___ सब उपधि, रोमज-पीछी, बुंडज-पीछी बन्धन, पुस्तक बन्धन, रुमाल वस्त्र और कागज को रक्खें वो तो सच्चा मुनि, और
आगमोक्त होने पर भी सिर्फ श्रा० कुन्द कुन्द.. द्वारा निषिध उपधि को रक्खे वह मुनि ही नहीं। यह कहां का न्याय ! ऐसी पाबन्दी एकान्त बाद में ही हो सकती है।
न्याय के जरिये तो दि० प्राचार्य भी वस्त्रादि की आज्ञा देते हैं, जो आगे सप्रमाण बताया जायगा । यहाँ तो. इतना ही विचारणीय है कि आदिम दिगम्बर शास्त्र निर्माता ने किस प्रकार जैन दर्शन में मत भेद की नींव डाली और जैन नाम को हटा कर "दिगम्बर" नाम को ही प्रधान बनाया। __ "सिर्फ नंगे रहो, दूसरी दूसरी उपधिकी छूट" इस एकान्त नंगे पन की ओट में क्या २ नाच होरहा है यह देखा जाय तो अपने को दुःख ही होता है । कतिपय “नग्न" माने दिगम्बर परिभाषा के अनुसार "अपरिग्रही" मुनि निम्न प्रकार ज़ाहिर हुए हैं।
१-तिलतुसमेत्तं न गिहदि हत्थेसु ।१८। दिगम्बर मुनि को सीर्फ हाथ से पैसा को छूने की मना है।
(सूत्र प्राभूत ) . २-क्वचित्कालानु सारेण सूरिर्दव्यमुपाहरेत् । गच्छ पुस्तक वृध्यर्थ अयाचितमथाल्पकं ॥८६॥