Book Title: Shravakachar Sangraha Part 2
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 26
________________ ३२०-३२८ ३२० ३२१ .... ३२२ ३२३ ३२४ ३२६ ३२९-३४० .... ३२९ ३२९ ३३० ३३० ३३१ ( २५ ) सोलहवां परिच्छेद शान्ति जिनको नमस्कार र परिग्रहपरिमाणवतका वर्णन परिग्रहप्रमाणके गुणोंका वर्णन परिग्रहका प्रमाण करके सन्तोषरूप खड्नसे लोभरूप राक्षसको जीतनेका उपदेश परिग्रहपरिमाणके अतिचार और उनके त्यागका उपदेश परिग्रहपरिमाण अणुव्रतमें प्रसिद्ध जयकुमारकी कथा परिग्रहमें आसक्त श्मश्रनवनीतकी कथा सत्रहवां परिच्छेव कुन्थु जिनको नमस्कार कर गुणवतका स्वरूप-वर्णन दिग्व्रतका स्वरूप और उसकी महत्ताका वर्णन दिग्व्रतके अतिचार और उनके त्याग का उपदेश अनर्थदण्डविरति व्रतका निरूपण अनर्थदण्डके भेदोंका विस्तृत वर्णन और उनके त्यागका उपदेश अनर्थदण्ड व्रतके अतिचार और उनके त्यागका उपदेश भोगोपभोग संख्यान व्रतका वर्णन कन्दमूलादि अभक्ष्योंके खाने पर अनन्तजीव घातका पाप बताकर सभी प्रकारके अभक्ष्यों के त्यागका उपदेश अनिष्ट और अनुसेव्य वस्तुओंके भी त्यागका उपदेश यम और नियमका स्वरूप प्रतिदिन भोग और उपभोगकी वस्तुओंके नियम लेनेका उपदेश भोगोपभोग संख्यान व्रतके फलका वर्णन भोग-तृष्णा-जयी पुरुषके मुनि तुल्यताका निरूपण भोगोपभोग व्रतके अतिचार और उनके त्यागका उपदेश अठारहवां परिच्छेद अर तीर्थंकरको नमस्कार कर शिक्षाव्रत-कथनको प्रतिज्ञा शिक्षाव्रतका स्वरूप और भेदोंका निर्देश - देशावकाशिक शिक्षाव्रतका वर्णन देशावकाशिक शिक्षाव्रतके अतिचार और उनके त्यागका उपदेश सामायिक शिक्षाव्रतको नामादि निक्षेपोंके द्वारा विस्तृत वर्णन एक वस्त्रके विना शेष सर्वपरिग्रहका त्यागकर एकान्त शान्त स्थानमें मन स्थिर कर सामायिक करनेका उपदेश सामायिकके समय आवश्यक परिकर्म करके जिन-स्तवन, चैत्य-वंदन, अनुप्रेक्षा-भावन एवं तत्त्वचिन्तवन करनेका उपदेश ३३६ .३३७ ३३७ ३३८ ३३८ " .... ३३८ ३३९ ३४१-३५६ ३४१ ३४१ ३४१ ३४२ ३४३ ३४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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