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मनमे विचार करने लगा कि, "मैंने व्यर्थ क्रोध वश अपना पराभव कराया तथा रौद्रध्यानसे कर्मबन्धन करके अनन्त दुःखका देनेवाला संसार भी उपार्जित किया, अतः मुझे धिक्कार है !" इस भांति अपनी आत्माकी शुद्धि कर व बैर बुद्धिका त्याग कर शूरने मृगध्वज राजा तथा उसके दोनों पुत्रोंसे क्षमा मांगी । चकित हो राजा मृगध्वजने शूरसे पूछा कि, "तू पूर्वभवका बैर किस प्रकार जानता है" ? शूरने उत्तर दिया कि, "हमारे नगरमें श्रीदत्त केवली आये थे । मैने उन्हें अपना पूर्व भव पूछा था, उस पर उन्होने बताया कि,"जितारि नामक भद्दिलपुरका राजा था । हंसी और सारसी नामक उसकी दो रानियां थीं, और सिंह नामक मंत्री था । वह राजा कठिन अभिग्रह लेकर तीर्थ यात्राको निकला । काश्मीर देशके अंदर यक्षके स्थापित किये हुए श्रीविमलाचलतीर्थ पर उसने जिनभगवानको वन्दना की । विमलपुरकी स्थापना कर बहुत समय तक वहां रहा और कालक्रमसे मृत्युको प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् सिंह मंत्री सर्व राज्य परिवार तथा नगरवासियोंको लेकर भदिलपुरकी ओर चला । सत्य है कि
जननी जन्मभूमिश्च, निद्रा पश्चिमरात्रिजा । इष्टयोगः सुगोष्टी च दुर्मोचाः पंच देहिभि: ॥१॥७१५॥
जननी, जन्मभूमि, पिछली रात्रिकी नींद, इष्ट वस्तुका संयोग तथा मनोहर- कहानी इन पांच बातोंका त्याग करना