Book Title: Shraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Jainamrut Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 734
________________ ( ७११ ) रखना । श्रसिंघ के चलनेके तथा मुकाम करने के जो ठहराव हुए हों, वे सर्वत्र प्रसिद्ध करना । मार्ग में सब साधर्मियोंकी भलीभांति सारसम्हाल करना । किसीकी गाडीका पहिया टूट जावे अथवा अन्य कोई तकलीफ हो तो स्वयं सर्वशक्तिसे उनको मदद करना । प्रत्येक ग्राम तथा नगर में जिनमंदिर में स्नात्र, ध्वजा चढाना, चैत्यपरिपार्टीआदि महोत्सव करना । जीर्णोद्वार आदिका भी विचार करना । तीर्थका दर्शन होनेपर सुवर्ण रत्न मोती आदि वस्तुओं द्वारा बधाई करना । लापशी, लड्डू आदि वस्तुएं मुनिराजको बहोराना | साधर्मिक वात्सल्य करना, उचित रीति से दान आदि देना तथा महान् प्रवेशोत्सव करना । तीर्थ में पहुंच जानेपर प्रथम हर्षसे पूजा, वंदन आदि आदरसे करना, अष्टप्रकारी पूजा करना तथा विधिपूर्वक स्नान करना । माल पहिरनाआदि करना । घीकी धारावाडी देना, पहिरावणी रखना | जिनेश्वर भगवानकी नवांग पूजा करना तथा फूलघर, केलीघर आदि महापूजा, रेशमीवस्त्रमय ध्वजाका दान, सदावर्त, रात्रिजागरण, गीत, नृत्यादि नाना भांतिके उत्सव, तीर्थप्राप्ति निमित्त उपवास, छट्ठआदि तपस्या करना। करोड, लक्ष चांवल आदि विविध वस्तुएं विविध उजमणे में रखना । भांति भांति के चौवीस, बावन, बहत्तर, अथवा एकसौ आठ फल अथवा अन्यवस्तुएं तथा सर्व भक्ष्य और भोज्य वस्तुसे भरी हुई थाली भगवानके सन्मुख रखना । वैसे ही

Loading...

Page Navigation
1 ... 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820