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भी योग न होवे तो पूर्व अथवा उत्तरदिशाको मुख करके अरिहंतों तथा सिद्धों के समक्ष आलोवे, आलोये बिना कभी न रहे, कारण कि शल्य सहित जीव आराधक नहीं कहलाता है ।
अग्गीओ नवि जाणइ, सोहिं चरणस्स देइ ऊहिअं । तो अप्पाणं आलो- अगं च पाडेइ संसारे ॥ ७ ॥
अर्थ:- स्वयं गीतार्थ न होनेसे चरण की शुद्धिको न जाने और लगे हुए पापसे कम या ज्यादा आलोयणा देवे और उससे तो वह पुरुष अपने आपको तथा आलोयणा लेनेवालेको भी संसार में पटकता है।
जह वालो जंपतो, कज्जमकज्जं च उज्जु भणई तं तह आलोइज्जा, मायामयविध्यमुको अ ॥ ८ ॥
अर्थ :- जैसे बालक बोलता हो, तब वह कार्य अथवा अकार्य जो हो सो सरलता से कहता है, वैसे आलोयणा लेनेवालेने माया अथवा मद न रखते अपना पाप साफ साफ कहकर आलोयण करना |
मायाइदोसरहिओ, पइसमयं वडूमाणसंवेगो ।
आलोइज्ज अकजं न पुणो काइति निच्छयओ ॥ ९॥
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अर्थ:- माया मद इत्यादि दोष न रखकर समय समय संभावनाकी वृद्धि कर जिस अकार्यकी आलोयणा करे वह अकार्य फिर कदापि न करे ऐसा निश्चय करे ।