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का च्यवन होने पर, वहां आ अपना रूप बता कुमारनंदी को मोहित किया । वह जब भोगकी प्रार्थना करने लगा, तब " पंचशैलद्वीप में आव " यह कहकर वे दोनों चली गई । पश्चात् कुम्पारनंदीने राजाको सुवर्ण देकर पडह बजवाया (ढिंढोरा पिटवाया ) कि, " जो पुरुष मुझे पंचशैलद्वीप में लेजाय, उसे मैं एक करोड द्रव्य दूं । " तदनुसार एक वृद्ध निर्वामिक. ( नाविक) करोड द्रव्य ले अपने पुत्रोंको देकर, कुमारनंदी को एक नौकामें बिठा बहुत दूर समुद्रमें लेगया । और वहां कहने लगा कि " “ साम्हने जो बड वृक्ष दृष्टि आता है, वह समुद्र के किनारे आई हुई पहाडी की तलेटी में है । इसके नीचे अपनी नौका पहुंचे तब तू बडकी शाखा पर बैठ जाना; तीन पैरवाला भारंड पक्षी पंचशैलद्वीप से आकर इसी बडपर सो रहते हैं, उसके बीच के पैरमें तूने वस्त्रसे अपने शरीरको मजबूत बांध रखना । प्रातःकालमें उक्तपक्षी के साथ तू भी पंचशैलद्वीप में जा पहुंचेगा । यह नौका तो अब भयंकर भ्रमर में फंस जावेगी । " तदनन्तर नाविकके कथनानुसार करके कुमारनंदी पंचशैलद्वीपमें पहुंचा और हा साहासको देख कर प्रार्थना की। तब हासा प्रहासाने उसको कहा कि " तू इस शरीर से हमारे साथ भोग नहीं कर सकता । इसलिये तू अग्नि प्रवेश आदि करके इस द्वीपका मालिक हो जा।' यह कह उन्होंने कुमारनंदीको हथेली पर बैठाकर चंपानगरीके उद्यानमें छोड दिया । पश्चात् उसके मित्र नागिलश्रावकने उसे