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(७६३) राजाओंसे सेवित चंडप्रद्योत राजा मेरा पति होवे. अर्थात् उदायन राजा तो मेरे पिता समान है और दूसरे राजा तो उदायनके सेवक हैं." __. तदनंतर देवताके वचनसे राजा चंडप्रद्योतने सुवर्णगुलिकाके पास दूत भेजा, परन्तु सुवर्णगुलिकाके चंडप्रद्योतको बुलवाया, उससे वह अनिलवेगहाथी पर बैठकर आया. सुवर्णगुलिकाने कहा कि, "यह प्रतिमा लिये बिना मैं वहां नहीं आ सकती. इसलिये इसीके समान दूसरी प्रतिमा बनवाकर यहां स्थापन कर, ताकि यह प्रतिमा ली जा सके" चंडप्रद्योतने उज्जयिनीको जाकर दूसरी प्रतिमा तैयार कराई, और कपिलनामक केवलीके हाथसे उसकी प्रतिष्ठा कराकर उसे ले पुनः वीतभय पट्टण आया. नई प्रतिमा वहां स्थापनकर प्राचीन प्रतिमा तथा दासी सुवर्णगुलिकाको साथ ले वह चुपचाप रात्रि में वापस घर आया. पश्चात् सुवर्णगुलिका और चंडप्रद्योत दोनों विषयासक्त होगये, जिससे उन्होंने उक्त प्रतिमा विदिशापुरीनिवासी भायल स्वामी श्रावकको पूजा करनेके लिये दे दी.
एक समय कंबलशंबल नागकुमार उस प्रतिमाकी पूजा करनेको आये. और पातालमेंकी जिनप्रतिमाको वन्दन करनेके इच्छुक भायलस्वामीको जलमार्ग द्वारा पातालमें ले गये. उस समय भायल प्रतिमाकी पूजा कर रहा था,परन्तु जानेकी उत्सुकतासे आधीही पूजा होने पाई, पातालमें जिनभक्तिसे प्रसन्न हुए नाग