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नहीं. फले हुए वृक्ष, फुलकी लताएं, सरस्वती, नवनिधानयुक्त लक्ष्मी, कलश, बधाई, चतुर्दश स्वप्नकी श्रेणीआदि चित्र शुभ हैं, जिस घरमें खजूर, दाडिम, केल, बोर, अथवा बीजोरी इनके वृक्ष ऊगते हैं, उस घरका समूल नाश होता है. घरमें जिनमें से दूध निकले ऐसा वृक्ष हो तो वह लक्ष्मीका नाश करता है, कंटीलावृक्ष होवे तो शत्रुसे भय उत्पन्न करता है, फलबाला होवे तो संततिका नाश करता है, इसलिये इनकी लकडी भी घरआदि बनाने के काममें न लेना. कोइ २ ग्रंथकार कहते हैं कि, घरके पूर्वभागमें बडवृक्ष, दक्षिणभागमें उंबर, पश्चिमभागमें पीपल और उत्तरभागमें प्लक्षवृक्ष शुभकारी है। . घरके पूर्वभागमें लक्ष्मीका घर ( भंडार ), आग्नेयकोणमें रसोई घर, दक्षिणभागमें शयनगृह, नैऋत्यकोणमें आयुधआदिका स्थान, पश्चिमदिशामें भोजन करनेका स्थान, वायव्यकोणमें धान्यागार ( धान्यके कोठे ) उत्तरदिशामें पानी रखनेका घर और ईशानकोणमें देवमंदिर बनाना चाहिये । घरके दक्षिणभागमें अग्नि, जल, गाय, वायु और दीपक, इनके स्थान करना और उत्तर तथा पश्चिमभागमें भोजन, द्रव्य, धान्य और देवके स्थान बनाना चाहिये । घरके द्वारकी अपेक्षासे अर्थात् जिस दिशामें घरका द्वार हो वह पूर्व दिशा व उसीके अनुसार अन्य दिशाएं जानो, छींककी भांति यहां भी सूर्यो. दयसे पूर्वदिशा नहीं मानना चाहिये । इसी प्रकार घर बनाने
उत्तरादशामें पानी
भार ईशानकोणमें
घरके