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(७२२) गीअत्थो कडजोगी, चारित्ती तय गाहणाकुसलो ॥ खेअन्नो अविसाई, भणिओ आलोअणायरिओ ॥३॥
अर्थः--आलोयणा देनेवाले आचार्य गीतार्थ अर्थात् निशीय. आदि सूत्रार्थके ज्ञाता, कृतयोगी अर्थात् मन, वचन, काया के शुभ योग रखनेवाले अथवा विविध तपस्या करनेवाले, अर्थात् विविध प्रकारके शुभध्यानसे तथा विशेषतपस्यासे अपने जीव तथा शरीरको संस्कार करनेवाले, चारित्री अर्थात् निरतिचार चारित्र पालनेवाले, ग्राहणाकुशल अर्थात् आलोयणा लेनेवालेसे बहुत युक्तिसे विविध प्रकारके प्रायश्चित तथा तप आदि स्वीकार करानेमें कुशल, खेदज्ञ अर्थात् आलोयणाके लिये दी हुई तपस्याआदिमें कितना श्रम पडता है ? उसके ज्ञाता अर्थात् आलोयणा विधिका जिन्होंने बहुतही अभ्याससे ज्ञान प्राप्त किया है, अविषादी अर्थात् आलोयणा लेनेवालेका महान् दोष सुनने में आवे तो भी विषाद न करनेवाले, आलोयणा लेनेवालेको भिन्न २ दृष्टान्त कहकर वैराग्यके वचनसे उत्साह देनेवाले हो ऐसा शास्त्रमें कहा है।
आयारवमाहारव, ववहारुब्धीलए पकुव्वी अ॥
अपरिस्सावी निज्जव, अवायदंसी गुरू भणिओ ॥४॥ अर्थ:- १ आचारवान् याने ज्ञानादि पांच आचारको पालन करनेवाले, २ आधारवान् याने आलोये हुए दोषका यथावत् मनमें स्मरण रखनेवाले, ३ व्यवहारवान् याने पांच प्रकारका