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(६२४) ने बहुत रोका, तो भी जीभकी लोलुपतासे वह भक्षण करने लगा. इतनेमें देवीने उसके मस्तक पर एक ऐसा प्रहार किया कि जिससे उसकी आंखें बाहर निकल कर भूमि पर गिर पड़ीं. " मेरा अपयश होगा" यह विचार श्राविकाने काउस्सग किया. तब उसके कहनेसे देवीने किसीके मारे हुए एक बकरेकी आंखें लाकर उस पुरुषको लगाई. जिससे उसका “ एडकाक्ष" नाम पड़ा. इस भांति प्रत्यक्ष विश्वास हो जानेसे वह श्रावक हो गया व उसको देखकर बहुतसे लोग भी श्रावक हो गये. कौतुकवश बहुतसे लोग उसे देखनेको आने लगे, जिससे उस नगरका भी नाम " एडकाक्ष " पड गया ... इत्यादि. - पश्चात् संध्यासमय अर्थात् अंतिम दो घडी दिन रहे तब सूर्यबिंबका आधा अस्त होनेके पहिले पुनः यथाविधि तीसरी बार जिनपूजा करना.
इति श्रीरत्नशेखरसूरिविरचित श्राद्धविधिकौमुदीकी हिन्दीभाषाका दिनकृत्यप्रकाशनामक
प्रथमः प्रकाशः संपूर्णः।