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स्थान कहां है ? उसे बराबर जानना चाहिये, जल समीप है कि नहीं ? सो तलाश करना, तथा द्वार बराबर बंद करना, इष्टदेवको नमस्कार करके अपमृत्युका भय दूर करना, पवित्र होना, तत्पश्चात् यथारीति वस्त्र पहिर कर रक्षामंत्र से पवित्र की हुई चौडी शय्या में सर्व आहारका परित्याग करके बाई करवटसे सो रहना । क्रोधसे, भयसे, शोकसे, मद्यपानसे, स्त्रीसंभोग से, बोझा उठानेसे, वाहन में बैठनेसे तथा मार्ग चलने से ग्लानि पाया हुआ, अतिसार, श्वास, हिचकी, शूल, क्षत (घाव ) अजीर्ण आदि रोग से पीडित, वृद्ध, बाल, दुर्बल, क्षीण और तृषातुर आदि पुरुषोंने कभी दिन में भी सो रहना चाहिये । ग्रीष्मऋतु में वायुका संचय, हवा में रूक्षता तथा छोटी रात्रि होती है, इस लिये उस ऋतु में दिनमें निद्रा लेना हितकारी है। परंतु शेष पुरुष के शेप ऋतुमें दिनमें निद्रा लेने से कफ, पित्त होनेसे निद्रा लेनी योग्य नहीं होती है । अधिक आसक्तिसे तथा बिना अवसर निद्रा लेना अच्छा नहीं । कारण कि वह निद्रा कालरात्रिकी भांति सुख तथा आयुष्यका नाश करती है । सोते समय पूर्वदिशा में मस्तक करे तो विद्याका और दक्षिणदिशामें करे तो धनका लाभ होता है, पश्चिमदिशा में मस्तक करे तो चिंता उत्पन्न हो, तथा उत्तरदिशा में करे तो मृत्यु अथवा हानि होती है।
आगम में कही हुई विधि इस प्रकार है: -- शयनके समय