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सूत्रके पाठ तक विधि कह प्रतिक्रमण करना पश्चात् आगे कहा जाता है उसके अनुसार अनुक्रमसे भली भांति करना ।। २८ ।। मुहपोत्ती वंदणयं, संबुद्धाखामणं तहाऽऽलोए || वंदण पत्ते अक्खा - मणं च वंदणयमह सुत्तं ॥ २९ ॥
अर्थः - प्रथम मुंहपत्तिका पडिलेहन कर लेना, तथा वंदन करना, पश्चात् संबुद्ध / खामणा तथा अतिचारकी आलोचना कर बाद में वंदना तथा प्रत्येकखामणा करना, तदनंतर वंदन करके पाक्षिकसूत्र कहना ।। २९ ।।
सुत्तं अभुद्वाणं, उस्सग्गो पुत्ति वंदणं तहय || पज्जेतिअखामणय, तह चउरो छोभवंदणया ॥ ३० ॥
अर्थः - पश्चात् प्रतिक्रमणसूत्र कहकर काउस्सग्ग सूत्रका पाठ कह काउस्सग्ग करना. तत्पश्चात् मुंहपत्ति पडिलेहन कर वंदना करके पार्यंतिक खामणा करे और चार थोभवंदना करे || ३० ||
पुत्र्वविद्दिव सव्वं, देवसिअं बंदणाइ तो कुणइ || सिज्जसुरी उस्सगे, भेओ संतिथयपढणे अ ॥ ३१ ॥ अर्थः पश्चात् पूर्वोक्तविधि के अनुसार देवसीप्रतिक्रमण वंदनादिक करना. उसमें सिज्जसुररीका काउस्सग्ग और अजितशांतिस्तव पाठ में कहना इतना फेरफार है ॥ ३१ ॥
एवं चिअ च मासे, वरिसे अ जहकमं विही णेओ ॥ पक्खच उमासवरि से सुनवरि नामभि नाणत्तं ॥ ३२ ॥