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चढा. वहां एक व्यंतराधिष्ठित वानर था, प्रथम राजपुत्र उसकी गोद में सो रहा और पश्चात् वानर राजपुत्रकी गोद में सोता था कि इतने में क्षुधा पीडित वाघ के वचन से राजपुत्रने उसे नीचे डाल दिया. वह बाघके मुखमें गिरा था, परन्तु ज्योंही बाघ हंसा, वह मुखमेंसे बाहर निकला और रुदन करने लगा. बाघके रुदन करनेका कारण पूछने पर उसने कहा कि, " हे बाघ ! अपनी जाति छोडकर जो लोग परजातिमें आसक्त होते हैं, उनको उद्देश करके मैं इसलिये रुदन करता हूं कि, उन मूखोंकी क्या गति होगी? " तदनन्तर इन वचनोंसे व अपने कृत्यसे लज्जित राजकुमारको उसने पागल कर दिया. तब राजपुत्र "विसेमिरा, विसेमिरा " यह कहता हुआ जंगल में भटकने लगा. उसका घोडा अकेलाही नगरमें जा पहुंचा. उस परसे शोध करवाके राजा अपने पुत्रको घर लाया बहुत से उपाय किये परन्तु राजपुत्रको लेशमात्र भी गुण न हुआ तब राजाको शारदानंदनका स्मरण हुआ । अंतमें जब राजाने अपने पुत्रको आरोग्य करनेवालेको आधा राज्य देनेका ढिंढोरा पिटवानेका निश्चय किया, तब मंत्रीनें कहा कि, "महाराज ! मेरी पुत्री थोडा बहुत जानती है । " यह सुन राजा पुत्रसहित मंत्रीके घर आया | पडदेके अंदर बैठे हुए शारदानंदनने कहा कि, "विश्वास रखनेवालेको ठगना इसमें कौनसी चतुराई है ? तथा गोद में सोये हुएको मारना इसमें भी क्या पराक्रम है ?
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