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हुई, वह मनुष्य निर्लज्ज हो जाता है, और निर्लज्ज हुआ मनुष्य स्वामी, मित्र और अपने ऊपर विश्वास रखने वालेका घात आदि गुप्त महापाप करता है. यही बात योगशास्त्रमें कही है. यथाः
एकत्रासत्यजं पापं, पापं निःशेषमन्यतः।
द्वयोस्तुलाविधृतयोराद्यमेवातिरिच्यते ॥ १॥" तराजूके एक पलडेमें असत्य रखें, और दूसरी बाजूमें सर्व पातक रखें तो दोनोंमें पहिला ही तौलमें अधिक उतरेगा. किसीको ठगना इसका असत्यमय गुप्तलघुपापके अन्दर समावेश होता है. इसलिये कदापि किसीको न ठगना चाहिये. न्यायमार्गसे चलना यही द्रव्यकी प्राप्ति कराने वाला एक गुप्त महामंत्र है. वर्तमानसमयमें भी देखते हैं कि न्यायमार्गानुयायी कितने ही लोग थोडा २ धनोपार्जन करते हैं, तोभी वे धर्मकृत्यमें नित्य खर्च करते हैं. ऐसा होते हुए भी जैसे कुएका जल निकले थोडा, परन्तु कभी भी क्षयको प्राप्त नहीं होता, इसी प्रकार उनका धन भी नष्ट नहीं होता. अन्य पापकर्म करनेवाले लोग बहुत द्रव्योपार्जन करते हैं, तथा विशेष खर्च नहीं करते, तो भी मरुदेशके सरोवरकी भांति वे लोग अल्पसमयमें निधन हो जाते हैं कहा है कि
आत्मनाशाय नोन्नत्यै, छिद्रेण परिपूर्णता । भूयो भूयो घटीयन्त्रं, निमजत् किं न पश्यसि ? ॥ १॥