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(५४७) कुमार ! इस स्थानमें तुझे इस भव तथा परभवकी इष्टवस्तुका लाभ होगा." कुमार अश्वपरसे उतरा तथा उसे तिलकवृक्षकी पांडमें बांध, कुछ सुगन्धित पुष्प एकत्रित कर तोतेके साथ मंदिरमें गया. व यथाविधि श्रीआदिनाथभगवानकी पूजा करके इस प्रकार स्तुति करने लगा.
श्रीमद्यगादिदेवाय, सेवाहेवाकिनाकिने । नमो देवाधिदेवाय, विश्वविश्वकदृश्वने ॥ १८६ ॥ परमानन्दकन्दाय, परमार्थकदेशिने । परमब्रह्मरूपाय, नमः परमयोगिने ॥ १८७ ॥ परमात्मस्वरूपाय, परमानन्ददायिने । नमखिजगदीशाय, युगादीशाय तायिने ।। १८८ ॥ योगिनामप्यगम्याय, प्रणम्याय महात्मनाम् । नमः श्रीशंभवे विश्वप्रभवेऽस्तु नमो नमः ॥ १८९ ॥
" सम्पूर्ण जगतके ज्ञाता और देवता भी जिसकी सेवा करनेको उत्सुक हो रहते हैं, ऐसे श्रीदेवाधिदेव श्रीआदिनाथभगवानको मेरा नमस्कार है । परमानन्दकन्द, परमार्थोपदशेक, परब्रह्मस्वरूप और परमयोगी श्रीआदिनाथभगवानको मेरा नमस्कार है । परमात्मस्वरूप, परमानन्ददाता, त्रिलोकनाथ और जगद्रक्षक ऐसे श्रीयुगादिदेवको मेरा नमस्कार है । महात्मापुरुषोंके वन्दन करने योग्य, लक्ष्मी तथा मंगलके निधि तथा योगियोंको भी जिनके स्वरूपका ज्ञान नहीं होता ऐसे श्रीआ