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धनपर निर्वाह चलानेवाला पुरुष प्रायः अन्यायी, कलह करनेवाला, अहंकारी और पापकर्मी होता है । जैसा कि रंक. श्रेष्ठी था । यथाः
मारवाड देशान्तर्गत पालीग्राममें काकूयाक और पाताक नामक दो भाई थे । जिनमें छोटा भाई पाताक धनवन्त व बड़ा भाई काकूयाक महान् दरिद्री था । और इसी कारण काकूयाक पाताकके घर चाकरी करके अपना निर्वाह करता था । एकसमय वर्षाकालके दिनमें बहुत परिश्रम करनेसे थका हुआ काकूयाक रात्रिको सो रहा । इससे पाताकने ठपका देकर कहा कि, " भाई ! अपने खेतकी क्यारिएं अधिक पानी भरनेसे फट गई, तो भी क्या तुझे उसकी कोई चिन्ता नहीं ?" यह सुन काकूयाक शीघ्र बिछौना त्याग, दूसरेके घर चाकरी करनेवाले अपने जीवकी निन्दा करता हुआ कुदाली लेकर खेतको गया । और कुछ लोगोंको फटी हुई क्यारियोंको पुनः ठीक करते देखकर उसने पूछा कि, " तुम कौन हो ?" उन लोगोंने उत्तर दिया-" हम तेरे भाईके चाकर हैं" उसने पुनः पूछा कि, “ मेरे चाकर भी कहीं हैं ?" उन्होंने कहा कि, “वल्लभी पुरमें हैं । " कुछ समयके बाद अवसर मिलते ही काकूयाकसपरिवार वल्लभीपुरको गया । वहां एक मोहल्लेमें गडरिये रहते थे । उनके पास एक घासका झोपडा बांधकर तथा उन्हीं लोगोंकी सहायतासे उसमें एक दुकान लगाकर रहने लगा।