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उसकी संपत्ति नहीं बढता, ऐसा जान पडता है. अत्यन्तलोभ भी न करना चाहिये. लोकमें भी कहा है कि- अतिलोभन करना, तथा लोभका समूल त्याग भी न करना. अतिलोभ वश सागर श्रेष्ठी समुद्रमें डूबकर मृत्युको प्राप्त हुआ था.
अपरिमित इच्छा जितना धन किसीको भी मिलना संभव नहीं है. निर्धन मनुष्य चक्रवर्ती होनेकी इच्छा चाहे करे परन्तु वह कदापि हो नहीं सकता. भोजनवस्त्रादि तो इच्छानुसार मिल भी सकते हैं । कहा है कि- इच्छानुसार फल प्राप्त करने वाले पुरुषने अपनी योग्यता ही के अनुसार इच्छा करनी चाहिये. लोकमें मांगनेसे परिमित वस्तु तो मिल जाती है, परन्तु अपरिमित नहीं मिल सकती. इसलिये अपने भाग्यादिके अनुसार ही इच्छा रखनी चाहिये । जो मनुष्य अपनी योग्यताकी अपेक्षा अधिकाधिक इच्छा किया करता है, उसे इच्छित वस्तुका लाभ न होनेसे सदा दुःखी ही रहना पड़ता है. निन्यानवे लाख टंकका अधिपति होते हुए करोडपति होनेके निमित्त धनश्रेष्ठीको अहर्निश बहुत क्लेश भोगना पडे. ऐसे ही और भी बहुतसे उदाहरण हैं. कहा है कि
आकांक्षितानि जन्तूनां, संपद्यते यथा यथा । तथा तथा विशेषाप्ती, मनेो भवति दुःखितम् ॥१॥ आशादासस्तु यो जातो, दासस्त्रिभुवनस्य सः। आशा दासीकृता येन, तस्य दास्ये जगत्त्रयी ॥२॥