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परन्तु उसने नहीं दिया । तब कुमारपाल राजाने रुष्ट हो चाहड को '. बहुत दान न करना" ऐसा कहकर साथमें सैन्य देकर भेजा। तीसरे दिन चाहडने भंडारीके पाससे लक्ष द्रव्य मांगा, तो उसने नहीं दिया, अतः उसे निकाल दिया, और यथेच्छ दान देकर रात्रिको चौदह सौ ऊंटनी सवारके साथ जा बंबापुरको घेर लिया । उस दिन नगरमें सातसौ कन्याओंका विवाह था, उसमें विघ्न न आवे, इस हेतुसे वह रात्रि वीत जाने तक विलम्ब करके प्रातःकाल होते ही चाहडने दुर्ग (किल्ला ) हस्तगत किया । तथा बंबेराके राजा के सात करोड स्वर्णमुद्रा व ग्यारहसौ घोडे लिये तथा किल्लेको तोड कर चूर्ण चूर्ण कर दिया। उस देश में अपने स्वामी कुमारपालकी आज्ञा प्रचलित की तथा सातसौ सालवियोंको साथ लेकर उत्सव सहित अपने नगरमें आया । कुमारपालने कहा- " अतिउदारता यह तेरेमें एक दोष है । वही दोष तुझे दृष्टिदोषसे अपनी रक्षा करनेका एक मंत्र है ऐसा मैं जानता हूं, कारण कि तू मेरी अपेक्षा भी अधिक द्रव्य का व्यय करता है। " चाहड ने कहा “ मुझे मेरे स्वामीका बल है इससे मैं अधिक व्यय करता हूं । आप किसके बलसे अधिक व्यय करो ? " चाहडके इस चतुरतापूर्ण उत्तरसे कुमारपाल बहुत प्रसन्न हुआ और उसको सन्मानपूर्वक " राजघरट्ट" की पदवी दी। दूसरेका पहिरा हुआ वस्त्र न लेना इस पर यह दृष्टांत है।