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लेनदेनके सम्बन्धमें जो भ्रान्तिसे अथवा विस्मरणआदि होनेसे कोई बाधा उपस्थित हो तो परस्पर व्यर्थ झगडा न करना. परन्तु चतुर लोक प्रतिष्ठित, हितकारी व न्याय कर सकें ऐसे चार पांच पुरुष निष्पक्षपातसे जो कहे, उसे मान्य करना. अन्यथा विवाद नहीं मिट सकता. कहा है कि - परैरेव निवर्यंत, विवादः सोदरेष्वपि । बिरलान् कङ्कतः कुर्यात् , अन्ये ऽन्यं गूढमूर्द्धजान् ॥ १ ॥
सहोदर भाइयोंमें विवाद होवे तो भी उसे अन्यपुरुष ही मिटा सकते हैं. कारण कि-उलझे हुए बाल कंघी ही से अलग२ हो सकते हैं. न्याय करनेवाले पुरुषोंने भी पक्षपातका त्यागकर मध्यस्थ वृत्ति रखकर ही न्याय करना चाहिये और वह भी स्वजन अथवा स्वधर्मीआदिका कार्य हो तभी उत्तमतासे सब बातोंका विचार करके करना, हर कहीं न्याय करने न बैठ जाना. कारण कि, लोभ न रखते उत्तमतासे न्याय करनेमें आने पर भी उस. से जैसे विवादका भंग होता है और न्याय करनेवालेकी प्रशंसा होती है, वैसे ही उससे एक भारी दोष भी उत्पन्न होता है. वह यह कि, विवाद तोडते न्याय करनेवालेके ध्यानमें उस समय खरी बात न आनेसे किसीका देना न होवे तो वह माथे पडता है, और किसीका खरा देना होवे तो वह रह जाता है. प्रस्तुत विषयके ऊपर एक बात सुनते हैं कि: